मोतियाबिंद क्या है?
यदि किसी व्यक्ति की उम्र 60 या उससे अधिक है तो ये संभावना हो सकती है कि उनकी दृष्टि धुंधली हो गई हो। इसका मतलब है कि उनको मोतियाबिंद हो गया है। वृद्ध लोगों में इस स्थिति का होना सामान्य है, और इसका इलाज आई स्पेशलिस्ट (नेत्र चिकित्सक) द्वारा किया जा सकता है।
बढ़ती उम्र के साथ आंख के लेंस पर बादल जैसे धुंधले धब्बे बन जाते हैं जिन्हें मोतियाबिंद कहा जाता है। आँखों का लेंस साफ़, लचीला और स्पष्ट होता है जो अधिकतर प्रोटीन (क्रिस्टल) से बना होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, लेंस में मौजूद प्रोटीन टूटने लगते हैं और इसी वजह से ये धुंधले धब्बे बनते हैं। मोतियाबिंद, हमारी दृष्टि को बहुत प्रभावित करता है।
मोतियाबिंद उम्र बढ़ने पर होने वाली एक आम समस्या है। ये समस्या दोनों आंखों में हो सकती है, लेकिन आमतौर पर दोनों आँखों में एक ही समय पर मोतियाबिंद नहीं होता है। मोतियाबिंद होने पर, ऐसा महसूस होता है जैसे आप एक गंदी खिड़की से बाहर देख रहे हैं। समय बीतने के साथ, विज़न और ख़राब हो जाता है।
मोतियाबिंद के लक्षण
मोतियाबिंद के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
- विज़न या दृष्टि का धुंधला या धूमिल होना।
- हेडलाइट्स, तेज धूप या लाइट लैंप के प्रति संवेदनशीलता।
- आँखों का चौंधिया जाना|
- रात में देखने में कठिनाई होना।
- रंगों को देखने के तरीके में बदलाव (जैसे कि रंग फीके दिख सकते हैं या फिर उतने चमकीले नहीं दीखते)।
- पढ़ने के लिए तेज़ रोशनी की आवश्यकता होना।
- बार-बार आँखों का नंबर बदलना, जिसमें पास की दृष्टि अधिक खराब हो सकती है।
- डबल विज़न
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मोतियाबिंद की स्टेज
स्टेज 1: प्रारंभिक स्टेज
प्रारंभिक स्टेज में, लेंस एकदम साफ़ और स्पष्ट रहता है लेकिन दूरी पर स्थित वस्तुओं पर ध्यान देने के बाद फिर से वापस पास की वस्तुओं पर ध्यान देने की क्षमता धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
स्टेज 2: अपरिपक्व स्टेज
इस स्टेज पर, लेंस की अपारदर्शिता (ओपेसिटी) दृष्टि को बाधित कर देती है। यदि आँख पर साइड से प्रकाश पड़ता है, तो पुतली का किनारा लेंस पर छाया डालता है।
स्टेज 3: परिपक्व स्टेज
इस स्टेज में, परिपक्व (पका हुआ) मोतियाबिंद के कारण लेंस पूरी तरह से सफेद या गहरे एम्बर रंग का हो जाता है। आँख की आईरिस का किनारा, अब कोई भी शैडो (छाया) नहीं डालता।
स्टेज 4: अतिपरिपक्व स्टेज
इस स्टेज में, लेंस सफेद धब्बों के साथ सिकुड़ जाता है और कभी-कभी आंशिक रूप से अपनी जगह से हट भी सकता है या फिर सेकेंडरी मोतियाबिंद भी हो सकता है।
मोतियाबिंद के कारण
मोतियाबिंद का मुख्य कारण है: आँखों के लेंस में प्रोटीन का धीरे-धीरे टूटना।
हालाँकि मोतियाबिंद, कुछ अन्य जेनेटिक (आनुवांशिक) और एनवायर्नमेंटल (पर्यावरणीय) फैक्टर्स के कारण भी हो सकता है। इन फैक्टर्स की वजह से दूसरों की तुलना में किसी एक व्यक्ति में मोतियाबिंद के विकसित होने या फिर कम उम्र में विकसित होने का जोखिम बढ़ सकता है।
- जेनेटिक्स से सम्बंधित जोखिम कारक: यदि किसी व्यक्ति का मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास है तो उनमें भी इस समस्या के विकसित होने का जोखिम बहुत ज्यादा होता है। कुछ जेनेटिक म्यूटेशंस से जन्मजात मोतियाबिंद भी हो सकता है।
- पर्यावरण से सम्बंधित जोखिम कारक हैं:
- वायु प्रदूषण।
- शराब (अल्कोहल)
- इंडस्ट्रीज से निकलने वाले केमिकल्स
- तंबाकू का धुआं
- कीटनाशक
- शरीर के ऊपरी हिस्से में रेडिएशन थेरेपी का इतिहास।
- सूर्य से यूवी (UV) प्रकाश के लंबे समय तक संपर्क में रहना।
- चिकित्सा से सम्बंधित जोखिम कारक हैं:
- कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का उपयोग
- रेटिना पिगमेंटोसा या यूवाइटिस जैसी आँखों की बीमारियाँ
- डायबिटीज
- ग्लूकोमा जैसी कुछ आँखों की सर्जरी होना।
मोतियाबिंद के प्रकार
- न्यूक्लियर मोतियाबिंद: इसे न्यूक्लियर स्क्लेरोटिक मोतियाबिंद के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के मोतियाबिंद लेंस के सेंटर में बनते हैं, जिसे न्यूक्लियस कहा जाता है। समय के साथ, लेंस सख्त हो जाता है और उसका रंग पीला या भूरा भी हो सकता है।
- कॉर्टिकल मोतियाबिंद: ये लेंस के बाहरी किनारे पर बनता है, जिसे कॉर्टेक्स कहा जाता है। वे सफेद वेजेज के रूप में बनने शुरू होते हैं, जैसे कि ट्राइएंगल जो आंख के सेंटर की ओर इशारा करते हैं। जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, वे प्रकाश को बिखेरते हैं।
- पोस्टीरियर सबकैप्सुलर मोतियाबिंद: ये लेंस कैप्सूल के ठीक पीछे के अंदर बनते हैं। यह वो हिस्सा होता है जो आपकी आंख के लेंस को घेरता है और उसे अपनी जगह पर रखता है। जब लाइट लेंस से होकर जाती है तो वे सीधे लाइट के रास्ते में होते हैं।
- एंटीरियर सबकैप्सुलर मोतियाबिंद: इस तरह का मोतियाबिंद, लेंस कैप्सूल के ठीक सामने बनता है। आपकी आंख में चोट या सूजन के कारण यह बीमारी हो सकती है।
- जन्मजात मोतियाबिंद: ये मोतियाबिंद जन्म के समय से ही होते हैं। या फिर जब आप बच्चे होते हैं तो इनका होना शुरू हो जाता है।
- सेकेंडरी मोतियाबिंद: जब किसी अन्य स्थिति या मेडिकल ट्रीटमेंट के कारण मोतियाबिंद हो जाता है, तो डॉक्टर इसे सेकेंडरी मोतियाबिंद कहते हैं। उदाहरण के लिए: डायबिटीज
- रेडिएशन मोतियाबिंद: यदि आप आंखों की सुरक्षा के बिना धूप में बहुत अधिक समय बिताते हैं तो कभी-कभी आपको मोतियाबिंद हो सकता है।
- लैमेलर या ज़ोनुलर मोतियाबिंद: यह प्रकार आमतौर पर छोटे बच्चों और दोनों आँखों में दिखाई देता है। इनका कारण बनने वाले जीन माता-पिता से बच्चे में स्थानांतरित हो जाते हैं।
- पोस्टीरियर पोलर मोतियाबिंद: ये लेंस के पिछले सेंटर पर होता है, और ये अक्सर उन जीन के कारण होता है जो परिवार से आपको मिलते हैं।
- एंटीरियर पोलर मोतियाबिंद: ये लेंस के सामने और सेंटर पर बनते हैं और छोटे सफेद बिंदुओं की तरह दिखते हैं। इस तरह के मोतियाबिंद से आम तौर पर विज़न में कोई परेशानी नहीं होती है।
मोतियाबिंद के ट्रीटमेंट की आवश्यकता क्यों है?
समय के साथ, मोतियाबिंद की वजह से व्यक्ति का विज़न धुंधला, हेज़ी या कम रंगीन हो सकता है। पढ़ने या अन्य रोजमर्रा की गतिविधियाँ करने में परेशानी हो सकती है। समय के साथ, मोतियाबिंद से दृष्टि हानि हो सकती है। अच्छी खबर यह है कि सर्जरी से मोतियाबिंद से छुटकारा पाया जा सकता है।
सर्जरी के लिए जाने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
सर्जरी करवाने के लिए हमेशा उसी क्लीनिक का चुनाव करना चाहिए, जहां पर आधुनिक तकनीक और आई स्पेशलिस्ट दोनों हों। सर्जरी से पहले मरीज को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यदि मरीज ऑपरेशन से पहले सारी तैयारी कर लेंगे, तो उन्हें ऑपरेशन के बाद जल्द से जल्द रिकवर होने में सहायता मिलेगी। सामान्यतः सर्जन रोगी को बताते हैं कि ऑपरेशन से पहले क्या करना चाहिए और क्या नहीं। उनके बताए गए निर्देश का पालन ज़रूर करें।
सर्जरी से पहले की तैयारी एवं निर्देश
- सर्जरी से लगभग एक सप्ताह पहले, डॉक्टर दर्द रहित अल्ट्रासाउंड करवाएंगे जिससे कि आँख की शेप और साइज का पता लगाया जा सके। इसका उद्देश्य है: सर्जरी के दौरान जिस लेंस का प्रत्यारोपण किया जायेगा उसका सही से निर्धारण किया जा सके, क्योंकि लेंस का चयन कॉर्निया के करवेचर और आंख की लंबाई के आधार पर किया जाएगा।
- यदि आपको डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर जैसी अन्य स्वास्थ्य स्थितियाँ हैं, तो डॉक्टर उनको सही स्तर पर बनाये रखने के लिए कह सकते हैं।
- सर्जरी के बाद कोई परेशानी न हो इसीलिए सर्जरी से पहले के दिनों में एंटीबायोटिक और/या एंटी-इंफ्लेमेटरी आई ड्रॉप्स उपयोग के लिए दी जा सकती हैं।
- क्योंकि मोतियाबिंद सर्जरी में लेंस को काटना शामिल होता है, इसलिए थोड़ी ब्लीडिंग हो सकती है। हालांकि यह आमतौर पर महत्वपूर्ण नहीं है, फिर भी डॉक्टर आपको सलाह दे सकता है कि सुरक्षा की दृष्टि से प्रक्रिया से पहले एस्पिरिन या एंटी-क्लॉटिंग दवाएं लेना बंद कर दें।
- अपनी सर्जरी से कम से कम तीन दिन पहले कॉन्टैक्ट लेंस पहनने से बचना चाहिए और इसके बजाय चश्मा पहनना चाहिए।
- अपनी सर्जरी के दिन, आपको मेकअप, फेशियल लोशन या क्रीम या आफ्टरशेव का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। मोतियाबिंद सर्जरी से पहले बस अपना चेहरा साबुन और पानी से धोना चाहिए।
- चूँकि सर्जरी के तुरंत बाद गाड़ी चलाने में परेशानी होगी, इसलिए अपने ऑपरेशन के बाद घर जाने के लिए किसी भी परिवारजन को अपने साथ लेकर आएं।
- सर्जरी से पहले 12 घंटे कुछ भी नहीं खाना चाहिए।
इलाज के दौरान होने वाली जांच
- स्लिट लैंप टेस्ट: स्लिट लैंप टेस्ट, एक बहुत ही कॉमन टेस्ट है जिसका उपयोग करके आई स्पेशलिस्ट आपकी आँखों की पूरी जांच करेगा। वे आपकी आँखों के हर हिस्से को देख सकेंगे - जिसमें उनके अंदर का भाग भी शामिल है। इससे उन्हें आपकी किसी भी समस्या का निदान करने या ग्लूकोमा या मोतियाबिंद जैसी स्थितियों के शुरुआती लक्षण पकड़ने में मदद मिलेगी।
- विज़ुअल ऐक्यूटी टेस्ट: यह आँखों की नियमित जांच का एक सामान्य हिस्सा है। यह एक त्वरित और आसान तरीका है जिससे आई स्पेशलिस्ट, दृष्टि की जांच कर सकता है और किसी भी बदलाव को नोट कर सकता है। आपको चश्मे या कॉन्टेक्ट्स की आवश्यकता हो सकती है, या यदि आप पहले से ही करेक्टिव लेंस पहनते हैं तो आपका डॉक्टर उसको ज़रूरत के अनुसार समायोजित कर सकता है।
मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा प्रक्रिया और विधि
मोतियाबिंद के लिए कई प्रकार के ऑपरेशन होते हैं, लेकिन उन सभी में एक चीज समान होती है: सर्जन पहले धुंधले लेंस को निकालता है और उसकी जगह एक आर्टिफिशियल लेंस लगाता है। पूरी प्रक्रिया को करने में लगभग 15 से 20 मिनट लगते हैं, और रात भर अस्पताल में रुकने की ज़रूरत भी नहीं होती है। यदि आपकी दोनों आंखों में मोतियाबिंद है, तो डॉक्टर दूसरी आंख की सर्जरी करने से पहले आपकी पहली आंख ठीक होने तक इंतजार करेगा।
- स्मॉल-इंसिज़न सर्जरी: इसे फेकोइमल्सीफिकेशन के रूप में भी जाना जाता है। इसमें लेंस को तोड़ने और फिर टुकड़ों को हटाने के लिए अल्ट्रासाउंड वेव्स का उपयोग किया जाता है। फिर डॉक्टर उन टुकड़ों को बाहर निकालते हैं और आर्टिफिशियल लेंस को आँख में डालते हैं।
- लार्ज-इंसिज़न सर्जरी: इसे एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है। इसमें कॉर्निया में एक लंबा चीरा लगाया जाता है और लेंस के धुंधले हिस्से को हटा दिया जाता है। सर्जरी के बाद, एक आर्टिफिशियल इंट्राऑक्युलर लेंस को डाला जाता है जहां पर पहले नेचुरल लेंस था।
- फेम्टोसेकेंड लेजर सर्जरी: इस ऑपरेशन में, सर्जन लेंस को तोड़ने के लिए लेजर का उपयोग करता है। अन्य प्रकारों की तरह, फिर वे नए लेंस को लगाते हैं।
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