भगंदर क्या है? - Bhagandar kya hai
भगंदर को मेडिकल भाषा में एनल फिस्टुला कहा जाता है। यह एक छोटी सुरंग है, जो आंत के अंत और गुदे के पास की त्वचा के बीच विकसित होती है। इसके कारण गुदा के पास की त्वचा में संक्रमण का खतरा बना रहता है जिसके कारण उन ऊतकों में पस या फिर फोड़ा बन जाता है, जिसके कारण रोगी को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ सकता है। यह ऐसी स्वास्थ्य स्थिति है, जिसके इलाज के लिए डॉक्टर सर्जरी का सुझाव देते हैं।
फिस्टुला के कारण क्या है? - Bhagandar ke karan
एनल फिस्टुले के होने के कई कारण हो सकते हैं। उनमें से मुख्य कारणों के बारे में नीचे बताया गया है -
- क्रोहन रोग (आंत की सूजन संबंधी विकार)
- रेडिएशन (कैंसर के लिए इलाज)
- ट्रामा या एक्सीडेंट
- यौन संचारित रोग (Sexually transmitted disease)
- टीबी
- डायवर्टीकुलिटिस (यह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें बड़ी आंत में छोटी छोटी थैलियां बन जाती हैं और सूजन हो जाती है)
- कैंसर
भगन्दर (फिस्टुला) के लक्षण - Anal Fistula ke lakshan
यदि रोगी निम्नलिखित लक्षणों का सामना करते हैं, तो उन्हें जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए -
- गुदा में बार-बार फोड़े होना
- गुदा के आसपास दर्द और सूजन की समस्या
- मल त्याग में दर्द और जलन
- रक्त हानि
- गुदा के आस-पास के फोड़े से दुर्गंध युक्त तरल पदार्थ का निकलना और उसके कारण त्वचा में जलन
- बुखार, ठंड लगना और थकान महसूस होना
- कब्ज और गुदा में सूजन
यह सारे लक्षण गुदा रोग की तरफ इशारा करते हैं, जिसके लिए त्वरित इलाज की आवश्यकता होती है।
भगंदर के इलाज की आवश्यकता क्यों है?
भगंदर (Anal fistula) एक ऐसी समस्या है, जिसके लिए त्वरित इलाज की आवश्यकता होती है। यदि इसका इलाज नहीं होता है, तो यह स्थिति कभी भी ठीक नहीं होगी और लक्षण से राहत नहीं मिलेगी। इलाज के लिए हमारे सर्वश्रेष्ठ गुदा रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें और इस रोग से हमेशा के लिए छुटकारा पाएं। भगंदर सर्जरी में गुदा क्षेत्र से पस और तरल पदार्थ को निकाला जाता है, जिससे भगंदर ठीक हो जाता है। भगंदर के इलाज के लिए अलग अलग प्रक्रिया का सुझाव डॉक्टर के द्वारा दिया जाता है।
भगंदर के इलाज से पहले ध्यान देने योग्य बातें!
किसी भी इलाज की तैयारी करने से रोगी को इलाज के बाद जल्द से जल्द दुरुस्त होने में सहायता मिलती है। सबसे पहले तो रोगी को इलाज से पहले सभी दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इसके साथ साथ रोगी को निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन जरूर करना चाहिए -
- यदि किसी दवा से एलर्जी है तो इसके बारे में डॉक्टर को सूचित करें।
- ऑपरेशन से कुछ दिन पहले तक धूम्रपान और शराब का सेवन बंद कर दें। इससे इलाज के बाद उत्पन्न होने वाली जटिलताएं कम हो जाएंगी।
- इलाज वाले दिन हल्का भोजन करें या फिर ऐसा भोजन करने से बचें, जिसमें वसा की मात्रा अधिक हो।
भगंदर (एनल फिस्टुला) के इलाज के दौरान होने वाली जांच - Diagnosis of Anal Fistula in Hindi
यदि डॉक्टर को रोगी के लक्षणों के आधार पर लगता है कि वह भगंदर से पीड़ित है, तो वह इसकी पुष्टि के लिए अन्य जांच या परीक्षण का सुझाव दे सकते हैं। सबसे पहले वह रोगी से कुछ प्रश्न पूछ सकते हैं, जैसे महसूस किए जा रहे लक्षण और वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति।
कभी कभी फिस्टुला का निदान आसान हो जाता है। मात्र शारीरिक परीक्षण के द्वारा फिस्टुला की जांच की जा सकती है। सामान्यतः इस स्थिति के निदान के लिए डॉक्टर गुदा से निकलने वाले तरल पदार्थ या फिर रक्त हानि की जांच करते हैं।
इसके अतिरिक्त, डॉक्टर स्थिति की पुष्टि के लिए एक्स रे और सीटी स्कैन जैसे परीक्षणों का सुझाव दे सकते हैं। कुछ गंभीर मामलों में डॉक्टर कोलोनोस्कोपी की सलाह दे सकते हैं। इसमें दूरबीन का प्रयोग होता है। भगंदर की पुष्टि के बाद ही डॉक्टर इलाज के प्रकार का निर्णय लेते हैं।
एनल फिस्टुला की शल्य चिकित्सा प्रक्रिया और विधि
एनल फिस्टुला के इलाज के लिए डॉक्टर तीन प्रकार के ऑपरेशन का सुझाव देते हैं और उन्हें फिस्टुला का स्थाई इलाज माना जाता है।
- फिस्टुलौटोमी (Fistulotomy): इस इलाज प्रक्रिया को सबसे सामान्य इलाज की प्रक्रिया की सूची में रखा जाता है। इस प्रक्रिया में भगन्दर की ट्यूब को काटकर खोला जाता है, जिससे भगन्दर ठीक होने की संभावना अधिक हो जाती है। लेकिन इस प्रक्रिया से स्फिंकटर मांसपेशियों को कुछ नुकसान हो सकता है।
- फिस्टुलेक्टोमी (Fistulectomy): इस प्रक्रिया में पूरे भगंदर को ही काट कर निकाल दिया जाता है। डॉक्टर इस इलाज के विकल्प का चुनाव उन मामलों में करते हैं, जो थोड़ी जटिल परिस्थिति होती है। इस सर्जरी के कुछ जोखिम और जटिलताएं भी है, जैसे रोगी को इलाज के बाद स्वस्थ होने में 6 से 7 सप्ताह तक का समय भी लग सकता है। इसके साथ साथ रोगी को मल नियंत्रण में भी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
- लेज़र ट्रीटमेंट (Laser Treatment): यह एक आधुनिक तकनीक है, जिसकी सहायता से भगंदर जैसा रोग का सटीकता से इलाज संभव हो पाता है। इस प्रक्रिया में स्फिंकटर मांसपेशियों को काटने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रक्रिया के बहुत लाभ होते हैं और सर्जरी के बाद रिकवर होने में भी कम समय लगता है।
भगंदर के इलाज की विधि
सामान्य मामलों में सबसे पहले डॉक्टर भगन्दर की नली की त्वचा और आसपास की मांसपेशियों में एक चीरा लगाएंगे, जिसके कारण घाव भर जाएगा। इस स्थिति में स्फिंकटर मांसपेशियों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता है। लेकिन कुछ मामलों जोखिम और जटिलताएं बढ़ जाती हैं।
अगर स्थिति जटिल है, तो भगन्दर के इलाज के लिए डॉक्टर इसके छेद में एक ट्यूब डालते हैं। इस ट्यूब को "सेटन" (Seton) कहा जाता है, और यह रबड़ से बनता है। सेटन की सहायता से संक्रमित तरल पदार्थ को भगंदर से निकालने का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद रिकवर होने में 6 सप्ताह या फिर उससे ज्यादा का समय लग सकता है।
भगन्दर के स्थान के आधार पर, डॉक्टरों को स्फिंकटर मांसपेशियों को काटने की आवश्यकता पड़ सकती है। इस कड़ी में डॉक्टर प्रयास कर सकते हैं कि इस क्षेत्र के आसपास की मांसपेशियों को किसी भी प्रकार का नुकसान न हो, लेकिन ऑपरेशन के मल को नियंत्रित करने में समस्या हो सकती है।
जोखिम और जटिलताएं
यदि इस स्थिति को अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो यह रोग कभी भी खत्म नहीं होगा। भगन्दर के इलाज के बाद कुछ जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं जैसे -
- संक्रमण: हर प्रकार की सर्जरी में संक्रमण का खतरा लगातार बना रहता है। भगंदर के ऑपरेशन के बाद संक्रमण शरीर के अन्य भाग में भी फैल सकता है। यदि ऐसा होता भी है, तो डॉक्टर इस रोग के निदान के लिए एंटीबायोटिक का सुझाव दे सकते हैं।
- मल पर नियंत्रण खोना: लेजर प्रक्रिया के सिवाय बाकी सभी प्रक्रियाओं में इस जोखिम की संभावना लगातार बनी रहती है। ऐसा होने से रोगी के मल को नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है। यदि रोगी को सर्जरी से पहले मल को नियंत्रित करने में समस्या होती थी, तो इस बात की संभावना है कि ऑपरेशन के बाद यह समस्या और भी ज्यादा विकराल रूप ले सकती है। ऐसा कम ही होता है लेकिन कुछ मामलों यह देखा गया है।
- भगंदर की समस्या फिर से होना: यह जटिलता बहुत कम मामलों में देखी गई है। यदि ऐसा होता है तो जल्द से जल्द डॉक्टर से परामर्श करें।
भगंदर के ऑपरेशन के बाद देखभाल कैसे करें?
ऑपरेशन के बाद जल्द से जल्द दुरुस्त होने के लिए डॉक्टर को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा। निम्नलिखित बातों का पालन कर रोगी जल्द से जल्द स्वस्थ हो सकते हैं और अपने काम पर वापस लौट सकते हैं -
- डॉक्टर के द्वारा सुझाए गए दर्द निवारक दवाएं और एंटीबायोटिक दवा समय पर लें।
- बिना डॉक्टर के सलाह कोई भी दवा का सेवन न करें।
- दिन में तीन से चार बार गर्म पानी से नहाएं।
- भगंदर को ठीक करने के लिए गर्म पैड से सेक लगाएं।
- डॉक्टर के सलाह के बाद ही अपने रोजाना का कार्य शुरू करें।
- फाइबर युक्त आहार का पालन करें और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करें।
- मल को मुलायम बनाने के लिए लैक्सेटिव का प्रयोग करें।
एनल फिस्टुला ऑपरेशन के बाद ठीक होने में कितना समय लगता है?
ज्यादातर लोग 1 या फिर 2 सप्ताह के भीतर ही अपने दैनिक गतिविधियों को करने में सक्षम हो पाएंगे। लेकिन कुछ गंभीर मामलों में फिस्टुला से पूर्णतः रिकवर होने में महीनों तक का समय लग सकता है। इस सवाल का निर्णय पूर्णतः फिस्टुला के आकार पर निर्भर करता है।
फिस्टुला ऑपरेशन का खर्च - Fistula Operation ka kharch
फिस्टुला ऑपरेशन का खर्च 45,000 रुपये से लेकर 60,000 रुपये तक आ सकता है। फिस्टुला के ऑपरेशन का खर्च कई कारकों के द्वारा प्रभावित हो सकता है जैसे -
- अस्पताल का चयन
- सर्जन की फीस
- एनेस्थीसिया का खर्च
- इलाज के लिए शहर का चुनाव
- एडमिशन चार्ज
- डिस्चार्ज फीस
- दवाओं का खर्च
- टेस्ट का खर्च
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एनल फिस्टुला ऑपरेशन के फायदे
सबसे पहले एनल फिस्टुला के इलाज के बाद रोगी को लक्षण से राहत तो मिलती ही है, लेकिन यदि रोगी इलाज के लिए लेजर प्रक्रिया का चुनाव करते हैं, तो इसका सीधा लाभ रोगी को मिल सकता है। लेजर से एनल फिस्टुला के ऑपरेशन के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं -
- न्यूनतम रक्त हानि और दर्द: लेजर सर्जरी के दौरान दर्द कम होता है और रक्त हानि भी कम से कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लेजर से विशिष्ट मांसपेशियों को ही लक्षित किया जाता है।
- गुदा के आसपास की ऊतकों को कम नुकसान: लेजर सर्जरी से गुदा के आसपास के ऊतकों (Tissue) को नुकसान नहीं होता है, क्योंकि ऑपरेशन से पहले ही क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को चिन्हित कर दिया जाता है और उसी का इलाज होता है।
- कम समय के लिए अस्पताल में भर्ती: एनल फिस्टुला का लेजर ऑपरेशन एक दिन की प्रक्रिया है, जिसमें भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है।
- कम समय में रिकवरी: लेजर ऑपरेशन के बाद रोगी जल्द से जल्द रिकवर हो जाते हैं, क्योंकि यह मिनिमली इन्वेसिव तकनीक होती है।
- फिस्टुला का स्थाई इलाज: लेजर प्रक्रिया को फिस्टुला का स्थाई इलाज माना जाता है, क्योंकि इससे इस रोग के फिर उत्पन्न होने की संभावना न के बराबर हो जाती है।
फिस्टुला के ऑपरेशन बाद डॉक्टर के पास कब जाएं
यदि भगंदर के ऑपरेशन के बाद भी रोगी के लक्षण में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं, तो रोगी को जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। वह स्थिति के निदान कर उत्तम इलाज का विकल्प के बारे में बता सकते हैं। इसके साथ साथ यदि रोगी को ऊपर बताए गए लक्षण महसूस होते हैं तो उन्हें जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
फिस्टुला के ऑपरेशन के बाद क्या खाना चाहिए क्या नहीं
क्या खाएं
- अनाज
- दाल
- हरे पत्ते वाली सब्जियां
- ताज़े फल
- भूरे रंग के चावल
- नारियल
- दूध से बने उत्पाद
- मछली
क्या न खाएं
- उच्च वसायुक्त डेयरी उत्पाद
- फास्ट फूड
- मिर्च पाउडर के साथ मसालेदार भोजन
- तले हुए खाद्य पदार्थ
- नमकीन खाद्य पदार्थ
- रेड मीट
- शराब
- कैफीनयुक्त पेय पदार्थ
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