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काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन - Kala Motiyabind ka ilaj

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) आंखों से जुड़ी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज न करवाने पर आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है और इससे अंधेपन का शिकार भी हो सकते हैं। इसलिए आज ही काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने के लिए हमारे नेत्र रोग विशेषज्ञ से अपॉइंटमेंट बुक करें।

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काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) क्या है?

काला मोतियाबिंद आंखों से जुड़ी बीमारी है इसे ग्लूकोमा भी कहा जाता है। यह बीमारी आपके ऑप्टिकल नर्व को नुकसान पहुंचा सकती है। ऑप्टिकल नर्व के माध्यम से आंखों से दिखाई देने वाली वस्तु की छवि (Image) को मस्तिष्क तक पहुँचती है जिसके बाद आपको चीजें साफ-साफ दिखाई पड़ती हैं।

सामान्य रूप से आंखों पर दवाब पड़ने के कारण ग्लूकोमा की बीमारी होती है लेकिन सभी रोगियों के ग्लूकोमा से संक्रमित होने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। आंखों के अंदर दबाव पड़ने से ऑप्टिकल नर्व के उत्तकों के नष्ट होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है जिसके कारण धीरे-धीरे आंखों की रोशनी का कमजोर होने के साथ ही अंधापन भी हो सकता है। इसलिए समय पर काला मोतियाबिंद का ऑपरेश करवाना चाहिए ताकि आपके आंखों की रोशनी को और अधिक नुकसान होने से बचाया जा सके।

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के लक्षण

प्राइमरी ओपन-एंगल ग्लूकोमा का सबसे सामान्य लक्षण है इसमें धीरे-धीरे आंख की रोशनी कम होने लगती है, इसके अलावा ग्लूकोमा के अन्य कोई स्पष्ट लक्षण के नहीं होते। इसलिए जरूरी है कि आप साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच ज़रूर करवाएं। नेत्र रोग विशेषज्ञ (Ophthalmologist) या आपके नेत्र विशेषज्ञ (Eye Specialist) आपकी दृष्टि में आने वाले किसी भी तरह के परिवर्तन को समझकर आपको सही सलाह दे सकें।

एक्यूट एंगल क्लोजर ग्लूकोमा को नैरो एंगल ग्लूकोमा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक तरह की मेडिकल इमरजेंसी है। अगर आपको नीचे बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण महसूस हों तो ऐसी स्थिति में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

  • आंखों में तेज दर्द होना
  • जी मिचलाना
  • उल्टी आना
  • आंख लाल होना
  • नजर में अचानक गड़बड़ी होना
  • रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखना
  • अचानक धुंधला दिखना

काला मोतियाबिंद कितने प्रकार का होता है?

काला मोतियाबिंद मुख्यता: पाँच प्रकार के होते हैं जैसे:-

  • ओपन-एंगल मोतियाबिंद - ओपन एंगल ग्लूकोमा होने पर आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने के अलावा कोई लक्षण नहीं होता हैं। इसमें आंख की रोशनी इतनी धीरे-धीरे से कम होती है कि जब तक कोई अन्य लक्षण दिखाई देते हैं, तब तक आंख को इतना नुकसान हो चुका होता है कि उसे लौटाया नहीं जा सकता। दुखद ये है कि यह ग्लूकोमा का सबसे आम प्रकार भी है।
  • एंगल-क्लोजर मोतियाबिंद - अगर आपकी आंख में एक्वियस ह्यूमर फ्लूइड का प्रवह अवरुद्ध हो जाता है तो यहां जमा फ्लूइड आंख पर गंभीर, तेज और दर्दनाक दबाव का कारण बनता है। यह एक आपात स्थिति होती है। अगर तेज दर्द, मतली और धुंधला दिखने जैसे लक्षण दिखें तो आपको जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
  • कॉग्निटल ग्लूकोमा - जिन बच्चों को जन्म कॉग्निटल ग्लूकोमा (Congenital Glaucoma) के साथ होता है, उनकी आंख के कोरण में दोष होता है। जिसकी वजह से द्रव्य की सामान्य निकासी धीमी पड़ जाती है या रुक जाती है। इस तरह के ग्लूकोमा में आमतौर पर आंखों में बादल से छाए रहना, बहुत ज्यादा पानी बहना और रोशनी के प्रति संवेदनशीलता जैसे लक्षण दिखते हैं। यह ग्लूकोमा जेनेटिक होता है।
  • सेकेंड्री ग्लूकोमा - किसी चोट या आंख से जुड़ी अन्य समस्या (जैसे मोतियाबिंद या आंख के ट्यूमर) के चलते होने वाली इस समस्या को सेकेंड्री ग्लूकोमा कहा जाता है। कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसी दवाओं के कारण भी इस तरह का ग्लूकोमा हो सकता है। बहुत कम मामलो में आंख के ऑपरेशन की वजह से भी इस तरह का ग्लूकोमा हो जाता है।
  • सामान्य-तनाव मोतियाबिंद - कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि आंख में दबाव नहीं होने के बावजूद ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है। इसका स्पष्ट कारण नहीं पता है। आंखों का बहुत अधिक संवेदनशील होना या ऑप्टिक नर्व में खून के बहाव में कमी की वजह से इस तरह का ग्लूकोमा हो सकता है।

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काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन से पहले किन बातों का ध्यान रखें?

काला मोतियाबिंद का इलाज (kala motiyabind ka ilaj) दवा या आई ड्रॉप से संभव नहीं है। सर्जरी ही एकमात्र ऐसा माध्यम जिससे ग्लूकोमा को हमेशा के लिए ठीक किया जा सकता है। काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन एक नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है। अगर आप काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए।

मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने से पहले निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:-

अपनी आंखों की जांच कराएं

अगर आप खुद में मोतियाबिंद के लक्षणों को देखते है या इस बीमारी से पीड़ित है तो डॉक्टर से परामर्श करने के बाद सबसे पहले इसकी उचित जांच कराएं। जांच की मदद से आपको इस बात का पता चलेगा कि आपको किस प्रकार का मोतियाबिंद है और वह कितना गंभीर है।

मोतियाबिंद के प्रकार और उसकी गंभीरता के आधार पर इसका सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया जा सकता है। इतना ही नहीं, ऑपरेशन से पहले जांच कराने से जटिलताओं का खतरा खत्म हो जाता है।

अनुभवी नेत्र रोग विशेषज्ञ का चयन करें

काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने से पहले डॉक्टर के अनुभव और विश्वसनीयता के बारे में पता करें। एक अनुभवी और विश्वसनीय नेत्र रोग विशेषज्ञ को काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने में काफी कुशल होता है, जिसके कारण सर्जरी के सफल होने की संभावना अधिक और काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के साइड इफेक्ट्स या जटिलताओं का खतरा कम से कम होता है।

आप जिस डॉक्टर से काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) का ऑपरेशन कराने वाले हैं उनके अनुभव और विश्वसनीयता के बारे में अवश्य पता करें। अब तक वह कितनी सर्जरी कर चुके हैं। उनके सर्जरी की सफसलता दर क्या है। एक डॉक्टर की विश्वसनीयता, अनुभव और कुशलता के बारे में पता करने के लिए आप उनकी वेबसाइट को देख सकते हैं, गूगल और प्रैक्टो पर उनके बारे में रिव्यूज पढ़ सकते हैं। आमतौर पर जिस डॉक्टर के पास 6-8 वर्षों का अनुभव प्राप्त होता है, उसे एक अनुभवी और विश्वसनीय डॉक्टर के रूप में देखा जाता है।

काला मोतियाबिंद का निदान (जाँच)

काला मोतियाबिंद का परीक्षण ये निर्धारित कर सकता है कि ऑप्टिक नर्व में ब्लॉकेज है या नहीं, जिससे दृष्टि संबंधी समस्याएं हो सकती है। एक नेत्र रोग विशेषज्ञ दर्द से राहत और जांच के लिए परीक्षण करने की सलाह दे सकता है। आपकी निम्न प्रक्रियाओं द्वारा मोतियाबिंद का निदान किया जा सकता है:

  • टोनोमेट्री: टोनोमेट्री एक फास्ट और सरल परीक्षण है, जो मरीज की आंखों के अंदर के दबाव की जांच करता है। इसके परिणाम से डॉक्टर को ये जानने में मदद होती है कि क्या मरीज को ग्लूकोमा का खतरा है या नहीं।
  • पेरीमेट्री: पेरीमेट्री परीक्षण मरीज की दृष्टि के सभी क्षेत्रों को चेक करते है, जिसमें मरीज का साइड या किनारे की दृष्टि शामिल है। ये परीक्षण करने के लिए, मरीज को एक कटोरे के आकार के उपकरण के अंदर देखना होता है, जिसे परिधि कहा जाता है।
  • पाकीमेट्री: ये एक सरल और दर्द रहित परीक्षण है, जो कॉर्निया की मोटाई को जल्दी से मापता है और आमतौर पर इसका निम्नलिखित के लिए उपयोग किया जाता है: ये निर्धारित करने के लिए कि रोगी का कॉर्निया लैसिक के लिए उपयुक्त है या नहीं या उसे किसी अन्य प्रकार के उपचार का विकल्प चुनना चाहिए। नियमित आंखों की जांच में जब डॉक्टर को कॉर्नियल असामान्यता का संदेह होता है।
  • गोनियोस्कॉपी: इस टेस्ट से ४० साल की उम्र में पहुंचने तक किसी भी व्यक्ति के दृष्टि परिवर्तन और आंखों की बीमारियों के शुरुआती लक्षणों का पता लगा सकते है। जिंदगी के ऐसे वक्त में सभी लोगों को एक नेत्र रोग विशेषज्ञ से अपनी आंखों की बीमारी की जांच करानी चाहिए।
  • ऑप्थल्मोस्कोपी: ऑप्थल्मोस्कोपी को फंडसस्कोपी या रेटिनल परीक्षा भी कहा जा सकता है। ये एक ऐसा परीक्षण है, जिसमे रोग विशेषज्ञ को मरीज की आंख के पिछले हिस्से को देख सकते है। मरीज के आंख के इस हिस्से को फंडस कहा जाता है, और इसमें निम्न शामिल होते हैं:
    • रेटिना
    • ऑप्टिक डिस्क
    • रक्त वाहिकाएं

काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन की विधियाँ

काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) के इलाज का लक्ष्य आंखों के अंदर इंट्राओक्यूलर प्रेशर (IOP) को कम करना है, ताकि आंख को होने वाले अतिरिक्त नुकसान को रोका जा सके। आमतौर पर डॉक्टर आईड्रॉप के साथ ग्लूकोमा का इलाज शुरू करते हैं। लेकिन जब आई ड्रॉप से रोगी को आराम नहीं मिलता है या अधिक एडवांस ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ती है इसलिए नेत्र रोग विशेषज्ञ आपको निम्न विधियों से काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने का सुझाव दे सकते हैं।

  • आईड्रॉप्स/दवा: प्रिस्क्रिप्शन आई ड्रॉप्स तरल पदार्थ को कम करती है और आंखों के दबाव को कम करने के लिए ड्रेनेज को बढ़ाती है। इस स्थिति के लिए कई प्रकार की आई ड्रॉप /दवाएं उपयोग की जा सकती हैं लेकिन जब आई ड्रॉप से आँखों की दृष्टि में किस भी प्रकार का असर नजर नहीं आती है तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर द्वारा ग्लूकोमा ऑपरेशन करने की सलाह दी जाती हैं।

ग्लूकोमा के इलाज के लिए अलग-अलग प्रकार की सर्जिकल प्रक्रियाएं इस प्रकार हैं:

  • लेज़र सर्जरी (Laser Surgery): इसका उपयोग क्लॉग्ड ट्यूब्स को साफ करने और निर्मित फ्लयूड प्रेशर को दूर करने के लिए किया जाता है। ग्लूकोमा के लिए लेज़र सर्जिकल प्रक्रियाएं भी कई प्रकार की होती हैं, जो नीचे दी गई हैं:
    • एर्गन लेज़र ट्रैबेक्युलोप्लास्टी (Argon Laser Trabeculoplasty - ALT)
    • सिलेक्टिव लेज़र ट्रैबेक्युलोप्लास्टी (Selective Laser Trabeculoplasty - SLT)
    • लेज़र पेरिफेरल इरिडोटॉमी (Laser Peripheral Iridotomy - LPI)
    • साइक्लोफोटोकोएग्यूलेशन (Cyclophotocoagulation)
  • ट्रैबेक्युलेक्टॉमी (Trabeculectomy): इस प्रक्रिया में सर्जन स्केलेरा (आंख का सफेद भाग) में एक छोटा सा कट लगाता है और टिश्यू के कुछ मैश को हटा देता है। ऐसा माना जाता है कि यह आंखों में टिश्यू को ड्रेंज करने में मदद करता है और कुछ आईओपी (IOP) प्रेशर से राहत देता है।
  • ड्रेनेज इम्प्लांट सर्जरी (Drainage Implant Surgery): क्योंकि ग्लूकोमा में आई ड्रेनेज सिस्टम लड़खड़ाने लगता है। आंखों से फ्लयूड निकालने का एक तरीका फ्लयूड को बाहर निकालने के लिए एक ट्यूब के साथ एक आर्टिफिशियल सिस्टम को इंप्लांट करना होता है।
  • इलैक्ट्रोक्योटेरी (Electrocautery): इस प्रक्रिया में सर्जन आंख के ड्रेनेज ट्यूब में चीरा लगाने के लिए ट्रैबेक्टोम नामक एक हीटिंग डिवाइस का उपयोग करता है। यह टिश्यू के मैश को हीट भेजता है और टीश्यू के निर्माण के साथ-साथ प्रेशर को दूर करने में मदद करता है।

काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन किस तकनीक से किया जाएगा

काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन किस तकनीक से करना हैं यह ग्लूकोमा के कारण आंखों में आई खराबी पर निर्भर करता है। इसमें एक्स्ट्राकैप्सूलर कैटरैक्ट एक्सट्रैक्शन, फेम्टोसेकेंड कैटरैक्ट सर्जरी और माइक्रो इंसीजन या फैको सर्जरी, आदि शामिल हैं। आपकी सर्जरी किस तकनीक से की जाएगी इसके बारे में अपने डॉक्टर से जरूर पूछें।

वैसे तो काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन ऊपर बताए गए सभी सर्जिकल तकनीक से किया जा सकता है।

लेकिन इन सबमें फेम्टोसेकेंड सर्जरी को काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन के लिए सबसे सुरक्षित तकनीक है। यह मोतियाबिंद का एक मॉडर्न और एडवांस सर्जिकल इलाज है। इस सर्जरी के दौरान डॉक्टर की मानवीय भूमिका कम हो जाती है। इसलिए सर्जरी के दौरान जटिलताओं का खतरा लगभग शून्य और सफलता दर अधिक से अधिक होती है।

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काला मोतियाबिंद के जोखिम वाले कारक क्या है?

काला मोतियाबिंद के अधिक बढ़ने से आंखों की दृष्टी जा सकती है, इसीलिए इन जोखिम वाले कारकों से अवगत रहें:

  • उच्च आंतरिक आंखों का दबाव (इंट्राओकुलर दबाव) होना
  • 60 वर्ष से अधिक उम्र होने के कारण
  • मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास होना
  • मधुमेह, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी चिकित्सीय स्थितियां होना
  • अत्यंत निकटदर्शी या दूरदर्शी होना
  • आंख में चोट या कुछ प्रकार की आंखों की सर्जरी होने के कारण
  • लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाएं या आईड्रॉप्स लेना

काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद क्या खाएं और क्या न खाएं?

काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन चाहे किसी भी सर्जिकल प्रक्रिया से क्यों न हुआ हो, आपको हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद क्या खाना चाहिए। क्योंकि काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद डाइट काफी हद तक इस बात का फैसला करता है कि आपकी आंख कितनी जल्दी और अच्छी तरह से ठीक होगी।

यही कारण है कि नेत्र रोग विशेषज्ञ आंख के ऑपरेशन के बाद क्या खाना चाहिएr इस बारे में मरीजों को कुछ खास और अहम सुझाव देते हैं। बहुत से ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिसमें ऑपरेशन सफलतापूर्वक होने के बाद भी मरीज के आंख की रौशनी वापस नहीं आई, और वापस आई भी तो काफी कम। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने ऑपरेशन के बाद अपने खान-पान पर जरा भी ध्यान नहीं दिया।

काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद परहेज को लेकर आपको कुछ खास ध्यान देना चाहिए। खान-पान में जरा सी भी लापरवाही आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। आप ऑपरेशन के बाद जितनी जल्दी ठीक होना चाहते हैं उतना ही हेल्दी चीजों को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद निम्नलिखित चीजों को अपने खान-पान में शामिल करें:-

एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर चीजों का सेवन करें

काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद डॉक्टर एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर चीजों का सेवन करने का सुझाव देते हैं। क्योंकि एंटीऑक्सीडेंट्स पोषक तत्वों से भरपूर होता है जो ऑपरेशन के बाद आपको जल्दी ठीक होने में काफी मदद करता है।

अंगूर, अनार, रास्पबेरी, स्ट्रॉबेरीज, ब्लू बेरीज, ब्लैकबेरीज और गोजी जामुन आदि में एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में पाया जाता है। आप इन्हें अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं।

काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन के बाद बेरीज का सेवन करना चाहिए

मोतियाबिंद की सर्जरी के बाद आप बेरीज का सेवन कर सकते हैं। क्योंकि इसमें विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है की विटामिन सी, कोलेजन और सॉफ्ट टिशू को फिर से बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। इसलिए मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद इसका सेवन आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है।

विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर सब्जियों का सेवन करें

सब्जियों का सेवन करना चाहिए जिसमें विटामिन्स और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद क्या-क्या खाना चाहिए में गोभी, आलू, गाजर, ब्रोकली, पत्ता गोभी, मीठे आलू, मीठी बेल मिर्च और ब्रेसल स्प्राउट्स, आदि शामिल हैं।

अगर आप यह सोच रहे हैं कि आंख के ऑपरेशन के बाद क्या खाना चाहिए तो आप ऊपर बताई गई सब्जियों को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। इन सभी सब्जियों का सेवन करने से रिकवरी के समय होने वाली जटिलताओं की संभावना लगभग खत्म हो जाती है।

सिगरेट से दूर रहें

सिगरेट का सेवन मोतियाबिंद के मुख्य कारणों में से एक है और मोतियाबिंद से पीड़ित होने की स्थिति में सिगरेट पीने से मोतियाबिंद का विकास सामान्य मोतियाबिंद के विकास की तुलना में तीन गुना अधिक होता है। इतना ही नहीं, सर्जरी के बाद सिगरेट का सेवन करने से आंख में लगे नए लेंस के खराब होने का खतरा भी होता है। इसलिए मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद आपको सिगरेट का सेवन बंद कर देना चाहिए।

खट्टे फल न खाएं

काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद आपको खट्टे फलों के सेवन से भी बचना चाहिए जिससे खांसी होने का खतरा है। आंख के ऑपरेशन के बाद खांसी होने पर आपकी आंखों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है और इससे आपकी आंखों को ठीक होने और रिकवरी में अधिक समय भी लग सकता हैं।

बार-बार आंखों पर हाथ न लगाएं

अगर आपकी आंखों में तेज खुजली या जलन हो तो खुद ही उसका इलाज करने के बजाय तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क कर उन्हें अपनी परेशानी के बारे में बताएं। रिकवरी के दौरान, अगर आप अपनी आंख या दृष्टि में कुछ भी असामान्य महसूस करते हैं तो इसे नजरअंदाज न करें। क्योंकि इससे आपकी परेशानियां बढ़ सकती हैं।

जिन लोगों के मन में हमेशा यह प्रश्न घूमता रहता है कि काला मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद क्या खाएं क्या ना खाएं तो आप ऊपर बताए गए खान-पान की चीजों को अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं। अगर काला मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद आपको किसी तरह की कोई परेशानी है तो बिना देरी किए जल्द से जल्द अपने नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए ताकि किसी भी समस्या का समाधान समय पर किया जा सके।

क्या आप इनमें से किसी लक्षण से गुज़र रहे हैं?

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अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या ग्लूकोमा में दर्द होता है?

कुछ स्थितियों में ग्लूकोमा दर्दनाक हो सकता है , लेकिन इन दो बातों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है: ग्लूकोमा के कारण आंखों का दबाव बढ़ सकता है और आपको बिना दर्द के ग्लूकोमा हो सकता है। यदि आप भी इस प्रकार के लक्षणों का सामना कर रहे हैं तो यह काला मोतियाबिंद यानि ग्लूकोम का कोई प्रकार हो सकता है जो दर्द का कारण बन सकता है, ऐसे स्थिति में काला मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाना आवश्यक हो जाता है।

ग्लूकोमा किस उम्र में होता है?

ग्लूकोमा का खतरा 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होता है लेकिन कई बार परिवार में ग्लूकोमा का इतिहास होने पर या किसी अन्य बीमारी के कारण कम उम्र में भी ग्लूकोमा हो सकता है।

ग्लूकोमा का पता कैसे चलता है?

यदि आपको लगता है कि आप ग्लूकोमा के किसी भी लक्षण का अनुभव कर रहे हैं, तो इसका पता आंखों की जांच से लगाया जा सकता है। ग्लूकोमा की जांच में आंखों में किस भी तरह को दर्द नहीं होता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ ग्लूकोमा और आंखों की अन्य समस्याओं के लिए आपकी आंखों की जांच करने से पहले आंखों की बूंदों से आपकी पुतलियों को चौड़ा (चौड़ा) करेगा, जिससे यह स्पष्ट यह स्पष्ट हो जाएगा कि आप किस प्रकार के ग्लूकोमा (काला मोतियाबिंद) से पीड़ित हैं।

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