बवासीर क्या है? । Bawasir kya hai
पाइलस आज के दौर में होने वाली एक सामान्य बीमारी है जो किसी को भी हो सकती है। अनियमित खानपान और जीवनशैली के कारण पाइल्स अधिक बढ़ जाता है। बवासीर मूलतः गुदा या निचले मलाशय में स्थित सूजी हुई रक्त वाहिकाएं होती हैं। इसे मेडिकल की भाषा में हेमोरॉयड्स भी कहते हैं।
बवासीर मल त्यागते समय असुविधा, दर्द, खुजली और रक्तस्राव का कारण बन सकता है। इसके कारणों के बारे में कोई सटीक या स्पष्ट जानकारी नहीं है। लेकिन कब्ज, गर्भावस्था, मोटापा और लंबे समय तक बैठे रहना या खड़े रहना जैसे कारक इसके विकास में योगदान कर सकते हैं। बवासीर को गंभीर स्वास्थ्य चिंता नहीं माना जाता है। इन्हें अक्सर जीवनशैली में बदलाव करके प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है।
बवासीर के प्रकार । Bawasir ke prakar in Hindi
बाहरी बवासीर: आंतरिक बवासीर में छोटी-छोटी गांठें होती हैं जो गुदा के आसपास की त्वचा के नीचे स्थिति होती हैं। इनके कारण मरीज को तेज खुजली और दर्द होता है। इसमें ब्लीडिंग हो सकती है।
आंतरिक बवासीर: आंतरिक बवासीर में गांठें, मलाशय के भीतर विकसित होती हैं जो बाहरी जांच के दौरान दिखाई नहीं देती हैं। आंतरिक बवासीर के कारण मल त्याग के दौरान मरीज को थोड़ी मात्रा में रक्तस्राव हो सकता है। इनसे दर्द महसूस होता है।
प्रोलैप्सड पाइल्स: आंतरिक और बाहरी पाइल्स दोनों प्रोलैप्स हो सकते हैं। इसका अर्थ है कि वे गुदा के बाहर खिंच सकते हैं और उभर सकते हैं। इनसे रक्तस्राव और गंभीर दर्द हो सकता है।
थ्रोम्बोस्ड पाइल्स: यह बवासीर की सबसे गंभीर स्थिति होती है। यह तब होता है जब गुदा क्षेत्र में एक या एक से अधिक नसों में रक्त का थक्का बनने लगता है। रक्त के ये थक्के गुदा पर एक कठोर गांठ के रूप में दिखाई देते हैं, जिसे छूने पर या बैठने पर रोगी को तीव्र दर्द होता है।
बवासीर के लक्षण । Bawasir ke lakshan in Hindi
- गुदा क्षेत्र के आसपास दर्दनाक गांठें
- खुजली, लालिमा, सूजन और बेचैनी
- गुदा के पास चिपचिपे तरल पदार्थ की उपस्थिति
- मल त्यागने के बाद चमकीला लाल रंग का खून आना
- मल त्यागने के बाद भी अधूरा मल त्याग महसूस होना
क्या आप इनमें से किसी लक्षण से गुज़र रहे हैं?
बवासीर के इलाज की आवश्यकता क्यों है?
बवासीर का इलाज उसकी स्टेज और गंभीरता पर निर्भर करता है। आमतौर पर बवासीर की शुरुआती स्टेज में इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें अपनी जीवनशैली में बदलाव के जरिए ठीक किया जा सकता है। बवासीर की यह वह स्थिति होती है जब मरीज को अधिक दर्द और ब्लीडिंग नहीं होती है और उसके दैनिक जीवन के कामकाज आंशिक रूप से प्रभावित होते हैं।
बवासीर की कुछ स्टेज काफी दर्दनाक होती हैं। जब बवासीर सामान्य से ज्यादा गंभीर होता है तो इसके इलाज की आवश्यकता हो सकती है। बवासीर की लास्ट स्टेज में गुदा क्षेत्र में रक्त का थक्का बनने लगता है। इसके कारण मरीज को लेजर सर्जरी कराने की आवश्कता हो सकती है। बवासीर का इलाज कराने के बाद रोगी को इससे होने वाले असहनीय दर्द, ब्लीडिंग से छुटकारा मिल जाता है।
बवासीर का इलाज कराने से पहले ध्यान देने योग्य बातें!
बवासीर का इलाज कराते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- बवासीर का इलाज कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपकी सर्जरी की प्रक्रिया किस प्रकार की है। बवासीर का ऑपरेशन करने की कई प्रक्रियाएं हैं, जैसे- लेजर सर्जरी, ओपन सर्जरी, स्टेपलर सर्जरी आदि।
- पाइल्स का ट्रीटमेंट कराने से कम से कम एक महीने पहले नशा करना बंद कर दें। यदि आप सिगरेट और शराब के शौकीन हैं तो इन्हें इलाज से एक महीने पहले बंद कर दें। दरअसल नशा करने से शरीर की इम्यूनिटी और जख्म को हील करने की क्षमता कम हो जाती है।
- बवासीर की सर्जरी कराने से पहले आपके द्वारा इस्तेमाल की जा रही दवाओं के बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं। हो सकता आप रक्त को पतला करने वाली दवाओं का सेवन कर रहे हों तो डॉक्टर उनके इस्तेमाल पर रोक लगा सकते हैं।
- एक अनुभवी और भरोसेमंद डॉक्टर से इलाज कराएं।
- पाइल्स सर्जरी को लेकर मन में किसी भी प्रकार का कोई डर न रखें। यह एक सामान्य सर्जरी की तरह ही है। इससे अधिक डरने की जरूरत नहीं है।
बवासीर के इलाज की शल्य चिकित्सा प्रक्रिया और विधि
बवासीर के इलाज की निम्न सर्जिकल प्रक्रियाएं हैं।
ओपन हेमरॉयडेक्टमी: यह बवासीर के इलाज की सबसे पुरानी प्रक्रिया है। इसमें रोगी को जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है और बवासीर के मस्सों को काटकर अलग किया जाता है। इसके बाद घाव को बंद कर देते हैं या खुला छोड़ देते हैं।
लेजर सर्जरी: बवासीर का लेजर के जरिए उपचार सबसे लोकप्रिय प्रक्रिया है। इसे लेजर हेमरॉयडेक्टमी भी कहते हैं। इस प्रक्रिया में मस्सों को नष्ट करने के लिए लेजर बीम का उपयोग किया जाता है। हालांकि यह प्रक्रिया भी एनेस्थीसिया के जरिए ही की जाती है लेकिन इसमें मरीज को कोई कट नहीं लगाया जाता है। यह कम समय में होने वाली एक दर्द रहित और एडवांस प्रक्रिया है, जिसमें कोई रक्तस्त्राव नहीं होता है और गुदा क्षेत्र में किसी भी प्रकार के निशान नहीं बनते हैं।
रबर बैंड लिगेशन: इस प्रक्रिया में बवासीर के बेस में रबर बैंड बांध दिया जाता है, जिससे मस्सों तक रक्त परिसंचरण नहीं होने के कारण वह सूख जाते हैं और गुदा से अपने आप ही अलग हो जाते हैं। यह आंतरिक बवासीर के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया है। रबर बैंड लिगेशन से ठीक होने वाले बवासीर के दोबारा होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
कोएगुलेशन थेरेपी: इस प्रक्रिया की मदद से छोटे और मध्यम आकार के बवासीर का इलाज किया जाता है। यह उपचार केवल आंतरिक बवासीर के लिए उपयोगी है। इस थेरेपी में एक उपकरण का उपयोग किया जाता, जिससे इन्फ्रारेड लाइट की तेज किरण निकलती है। इन्फ्रारेड लाइट से स्कार टिश्यू का निर्माण हो जाता है और बवासीर तक खून की सप्लाई बंद हो जाती है। इससे बवासीर खत्म हो जाता है।
स्क्लेरोथेरेपी: इस प्रक्रिया में डॉक्टर इंजेक्शन की मदद से एक केमिकल को आंतरिक बवासीर के मस्सों पर लगाते हैं। जिससे मस्से पूरी तरह से सूख जाते हैं।
स्टेप्लिंग हेमरॉयडेक्टमी: इस प्रक्रिया में स्टेपलर की मदद से बवासीर के मस्से को स्टेपल कर दिया जाता है। स्टेपल करने के बाद मस्सों तक खून की सप्लाई बंद हो जाती है और बवासीर ठीक होने लगता है। ओपन सर्जरी की तुलना में इलाज की यह प्रक्रिया कम दर्दनाक और सुरक्षित होती है।
बवासीर से होने वाले जोखिम और जटिलताएँ
बवासीर के कारण व्यक्ति को निम्न जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
- एनीमिया।
- जलन
- दर्द
- खुजली
- शरीर में बेचैनी
- काम में मन न लगना
- बाहरी बवासीर में रक्त का थक्का जमना।
- संक्रमण।
- ऊतक का फ्लैप जो त्वचा से लटकता है।
- गुदा की मांसपेशियों का बाहर निकलना जो आंतरिक बवासीर में रक्त के प्रवाह को रोक देती हैं।
बवासीर के ऑपरेशन के बाद देखभाल कैसे करें?
बवासीर के मरीज निम्न बातों का ध्यान रखकर इससे होने वाले दर्द व ब्लीडिंग को कम कर सकते हैं।
- सर्जरी के बाद बहुत देर तक न बैठें और न ही शौच करते समय बहुत अधिक जोर लगाएं।
- मल को न रोकें। जब इच्छा हो तो मल त्याग जरूर करें।
- पूरे दिन खूब पानी पियें।
- अधिक फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करें
- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। चलते रहने से आंत गतिशील रहती हैं।
बवासीर के ऑपरेशन के बाद ठीक होने में कितना समय लगता है?
बवासीर के ऑपरेशन के बाद ठीक होने की प्रक्रिया अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग हो सकती है। अगर लेजर सरज्री की बाद करें तो इसके जरिए पाइल्स का ट्रीटमेंट कराने वाले लोग 30 से 45 दिन में पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। पाइल्स सर्जरी के बाद मरीज रिकवरी उसके द्वारा अपनाई गई जीवनशैली पर भी निर्भर करती है। यदि सही समय पर दवाओं का सेवन नहीं किया जाता है तो ठीक होने की समय सीमा बढ़ सकती है। साथ पाइल्स दोबारा होने की संभावना भी बढ़ जाती है। पाइल्स ट्रीटमेंट से ठीक होने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- ऑपरेशन की जगह को साफ रखें और कोई भी संक्रमण न होने दें।
- स्नान करने के लिए हमेशा हल्के गर्म पानी का इस्तेमाल करें। इससे रिकवरी में तेजी आती है।
- सर्जरी के बाद भारी वजन उठाने से बचें। ऐसा कोई भी काम न करें जिससे गुदा क्षेत्र में दबाव पड़ता हो।
- पौष्टिक और स्वस्थ्य आहार शैली को अपनाएं। तेल और तीखे भोजन से परहेज करें।
- अपने आपके हमेशा हाइड्रेटेड रखें। रोजाना कम से कम 8 से 10 गिलास पानी पिएं।
- मल त्यागते समय अधिक ज़ोर ना लगाएं।
बवासीर के ऑपरेशन का खर्च
भारत में बवासीर के उपचार की कीमत उसकी गंभीरता पर निर्भर करती है। बवासीर की सामान्य स्थितियों को दवाओं के जरिए बेहद कम खर्चे पर ठीक किया जा सकता है। लेकिन इसके स्थायी इलाज के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। भारत में पाइल्स सर्जरी की शुरुआती कीमत 45,000 औसत कीमत 52,500 रुपए और अधिकतम कीमत 60000 रुपए तक हो सकती है।
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बवासीर के ऑपरेशन के फायदे
बवासीर का इलाज कराने के बाद व्यक्ति एक सामान्य जीवन जीने लगता है। इसके कारण होने वाले असहनीय दर्द से छुटकारा मिल जाता है। पाइल्स के लेजर ट्रीटमेंट से निम्न लाभ हो सकते हैं:
- न्यूनतम इनवेसिव
- पूरी तरह से सुरक्षित प्रक्रिया
- कोई कट नहीं और कोई टांका नहीं लगता
- बार-बार होने वाले दर्द से राहत
- ब्लीडिंग नहीं होती
- व्यक्ति कम समय में रिकवर होकर दैनिक जीवन में जल्द ही वापसी कर लेता है
- इससे बवासीर के दोबारा होने की संभावना न के बराबर होती है
बवासीर के ऑपरेशन के लिए डॉक्टर के पास कब जाएं
बवासीर के लक्षण दिखने पर आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। बवासीर के लक्षण कोलोरेक्टल कैंसर जैसी अन्य गंभीर स्थितियों में भी देखने को मिलते हैं ऐसे में इनकी चिकित्सकीय जांच करना बेहद जरूरी होता है। इसके अलावा कुछ परिस्थितियां नीचे दी जा रही हैं जिनके कारण आपको डॉक्टर से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती है।
- बवासीर के घरेलू प्रबंधन के बाद भी 2-4 दिनों के बाद लक्षण मौजूद रहते हैं।
- मलाशय से ब्लीडिंग होने की स्थिति में।
- मल त्यागते समय या नॉर्मली तेज दर्द होने पर।
- पेट में दर्द होने पर।
- पुरानी कब्ज या दस्त।
- बुखार और ठंड लगने पर।
- मतली और उल्टी होने पर।
- मलाशय से गंभीर रक्तस्राव और दर्द होने पर।
बवासीर के ऑपरेशन के बाद क्या खाना चाहिए क्या नहीं
बवासीर होने पर निम्न खाद् पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें:
फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ: उच्च फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों कब्ज कम करने में मदद करते हैं। इससे मल त्यागते समय परेशानियों का सामना नहीं करनी पड़ता। इनमें साबुत अनाज, चोकर, बीन्स, दाल, छोले, फल, सब्जियां, मेवे और बीज शामिल हैं।
विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ: विटामिन सी एक एंटीऑक्सीडेंट है जो इम्यून सिस्टम में सुधार कर सकता है. यह बवासीर के कारण होने वाली सूजन को कम कर सकता है और रक्त वाहिकाओं को मजबूत कर सकता है। विटामिन सी की प्राप्ति के लिए आप खट्टे फल, ब्रोकोली और शिमला मिर्च का सेवन कर सकते हैं।
बायोफ्लेवोनॉइड्स से भरपूर भोजन: बायोफ्लेवोनॉइड्स पौधे के यौगिक हैं जो रक्त वाहिकाओं को मजबूत कर सकते हैं और सूजन को कम कर सकते हैं। इनमें बवासीर के लक्षणों को कम करने की संभावना होती है। इसके लिए आप खट्टे फल, जामुन और डार्क चॉकलेट का सेवन कर सकते हैं।
प्रोबायोटिक्स: प्रोबायोटिक्स आंत के स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं और मल त्याग को नियंत्रित कर सकते हैं। इससे कब्ज और बवासीर के लक्षणों के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
इन खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचें
-प्रसंस्कृत फूड: ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचें जिनमें अधिक मात्रा नमक, चीनी और वसा पाया जाता है। इससे सूजन, पाचन संबंधी समेत अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इससे बवासीर के लक्षण बढ़ सकते हैं।
रेड मीट: बवासीर के मरीज को रेड मीट का सेवन नहीं करना चाहिए। हालांकि कुक्कुट, मछली और सेम जैसे प्रोटीन स्रोतों का सेवन कर सकते हैं।
डेयरी उत्पाद: बवासीर के मरीज को दुग्ध आधारित खाद्य या पेय पदार्थों से दूरी बनानी चाहिए।
तेल और मसालेदार भोजन: अधिक तेल और मसालेदार भोजन अपच का कारण बन सकता है। ऐसे में यह बवासीर के लक्षणों को बढ़ा सकता है। इनका सेवन करने से बचना चाहिए।
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